तेरे मुरली का दोष
हे मदन मोहन, हे गोपाल !
तेरी मुरली मुझे रिझाती
तुम्हे है अति प्यारी I
सदा तुम्हारा स्पर्श पाती
मुझे सदा तड़पाती I
नहीं आना तेरे पास
जब तक है मुरलिया का रास I
हे मन मोहिनी, हे राधे !
तुम ही मेरी प्राण
मेरे मुरली की सुर तान I
सदा तुम्हारा याद दिलाती
तुम्हे खींचे ले आती I
तुम्ही हो इसकी ताल छंद
ना करो तुम इससे द्वन्द I
तुम्हे बुलाना इसका श्रेय
न आयोगी तो इसका क्या ध्येय ?
हे मदन मोहन, हे गोपाल !
तेरी मुरली मुझे रिझाती
तुम्हे है अति प्यारी I
सदा तुम्हारा स्पर्श पाती
मुझे सदा तड़पाती I
नहीं आना तेरे पास
जब तक है मुरलिया का रास I
नहीं है मुझसे प्यार
नहीं आना इस पार Iहे मन मोहिनी, हे राधे !
तुम ही मेरी प्राण
मेरे मुरली की सुर तान I
सदा तुम्हारा याद दिलाती
तुम्हे खींचे ले आती I
तुम्ही हो इसकी ताल छंद
ना करो तुम इससे द्वन्द I
तुम्हे बुलाना इसका श्रेय
न आयोगी तो इसका क्या ध्येय ?