दूर खड़े हो की
साहिल उस पार जाना है I
इस जहाँ में तुम क्या
खुदा को भूल जाना है I
जालिम उन आँखों का क्या दोष
जिसमे खुदा का नूर दिखता था I
उनकी बातों में क्या मोती की लड़ी थी
जिसपे यह दिल मचलता था I
तुम्हारी एक मुस्क्कुराहत पर
जान निशार करता है I
तुम आयोगी एक दिन क्यूंकि
नदिया को सागर में मिलना है I
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