दुःख
आसुओं के अथाह सागर में ,
गोते खाता यह जीवन l
कष्ट दुख रुदन को
देखकर रोता मेरा मन l
यहाँ गोलियां, वहां बम
क्या हो किसको किस क्षण l
निर्मम निर्दय निरुद्वेग
सबकुछ सहता यह जीवन l
अपने अपने में खोया मानव
किसको क्या हो जाने कौन ?
कौन पार लगाएगा इसमें
तिनका का सहारा भी कोई देता न l
आसुओं के अथाह सागर में ,
गोते खाता यह जीवन l
This poem I wrote on 25 March 1999. After that I had not written any poems..as when I wrote a poem for my then Bhavan magazine..Our dear Hindi teacher told..that was a crap. I left writing poems.. But someday I will again start writing poems..
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